"Best Collection of Hullana's poems"

​दोहे / हुल्लड़ मुरादाबादी



कर्ज़ा देता मित्र को, वह मूर्ख कहलाए,

महामूर्ख वह यार है, जो पैसे लौटाए।


बिना जुर्म के पिटेगा, समझाया था तोय,

पंगा लेकर पुलिस से, साबित बचा न कोय।


गुरु पुलिस दोऊ खड़े, काके लागूं पाय,

तभी पुलिस ने गुरु के, पांव दिए तुड़वाय।


पूर्ण सफलता के लिए, दो चीज़ें रखो याद,

मंत्री की चमचागिरी, पुलिस का आशीर्वाद।


नेता को कहता गधा, शरम न तुझको आए,

कहीं गधा इस बात का, बुरा मान न जाए।


बूढ़ा बोला, वीर रस, मुझसे पढ़ा न जाए,

कहीं दांत का सैट ही, नीचे न गिर जाए।


हुल्लड़ खैनी खाइए, इससे खांसी होय,

फिर उस घर में रात को, चोर घुसे न कोय।


हुल्लड़ काले रंग पर, रंग चढ़े न कोय,

लक्स लगाकर कांबली, तेंदुलकर न होय।


बुरे समय को देखकर, गंजे तू क्यों रोय,

किसी भी हालत में तेरा, बाल न बांका होय।


दोहों को स्वीकारिये, या दीजे ठुकराय,

जैसे मुझसे बन पड़े, मैंने दिए बनाय।

 क्या बताएँ आपसे / हुल्लड़ मुरादाबादी


क्या बताएँ आपसे हम हाथ मलते रह गए

गीत सूखे पर लिखे थे, बाढ़ में सब बह गए


भूख, महगाई, गरीबी इश्क मुझसे कर रहीं थीं

एक होती तो निभाता, तीनों मुझपर मर रही थीं

मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे

मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान् थे

रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए

हर तरफ़ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए

कुछ नहीं जब मिल सका तो भाव में बहने लगे

और चूहों की तरह ही दुम दबा भगने लगे

हमने तब लाईट जलाई, डायरी ले पिल पड़े

चार कविता, पाँच मुक्तक, गीत दस हमने पढे

चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े


रो रहे थे चोर सारे, भाव में बहने लगे

एक सौ का नोट देकर इस तरह कहने लगे

कवि है तू करुण-रस का, हम जो पहले जान जाते

सच बतायें दुम दबाकर दूर से ही भाग जाते

अतिथि को कविता सुनाना, ये भयंकर पाप है

हम तो केवल चोर हैं, तू डाकुओं का बाप है


साल आया है नया / हुल्लड़ मुरादाबादी


यार तू दाढ़ी बढ़ा ले, साल आया है नया

नाई के पैसे बचा ले, साल आया है नया


तेल कंघा पाउडर के खर्च कम हो जाएँगे

आज ही सर को घुटा ले, साल आया है नया


चाहता है हसीनों से तू अगर नजदीकियाँ

चाट का ठेला लगा ले, साल आया है नया


जो पुरानी चप्पलें हैं उन्हें मंदिरों पर छोड़ कर

कुछ नए जूते उठा ले, साल आया है नया


मैं अठन्नी दे रहा था तो भिखारी ने कहा

तू यहीं चादर बिछा ले, साल आया है नया


दो महीने बर्फ़ गिरने के बहाने चल गए

आज तो हुल्लड़ नहा ले, साल आया है नया


भूल जा शिकवे, शिकायत, ज़ख्म पिछले साल के

साथ मेरे मुस्कुरा ले, साल आया है नया


दौड़ में यश और धन की जब पसीना आए तो

‘सब्र’ साबुन से नहा ले, साल आया है नया


मौत से तेरी मिलेगी, फैमिली को फ़ायदा

आज ही बीमा करा ले, साल आया है नया



         “कुमार रंजीत”!!®!!..

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